वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
सवाल: वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
नीलकंठ को फलों के वृक्षों से भी अधिक पुष्पित व पल्लवित (सुगन्धित व खिले पत्तों वाले) वृक्ष भाते थे। इसीलिये जब वसंत में आम के वृक्ष मंजरियों से लदे जाते और अशोक लाल पत्तों से ढक जाता तो नीलकंठ के लिए जालीघर में रहना असहनीय हो जाता तो उसे छोड़ देना पडता। नीलकंठ को बसंत ऋतु बहुत पसंद होती है चारों तरफ खिले हुए फूल पेड़ों पर नई नई पत्तियां आम के पेड़ों पर मंझरिया उसके मन को खुश कर देते थे इस सुनहरे दृश्य को देखकर नीलकंठ का मन जाली घर से बाहर आने के लिए बेचैन हो जाता था इस प्रकार के सुहाने मौसम और वातावरण में उसका जाली में बंद रहना असहनीय होता था और वह बाहर आने के लिए तड़पता था वसंत ऋतु के फल होते हैं आपके स्वभाव के कारण नीलकंठ उत्पन्न हो जाता है ।अशोक का पौधा नए गुलाबी पत्तों से भर जाता है। तो वह बाड़ी में खुद को रोक नहीं पाता उसे मेघा के उमड़ने से पूर्व ही इस बात की आहट हो जाती थी कि आज बारिश होने वाली है। उसका स्वागत करने के लिए अपने सर में मंदिर के का करने लगता है और उसके गुंजा सारे माहौल में फैल गए। इस वर्ष अपना मनोहरी डांस करने के लिए अधीर हो उठता और जाली घर से सड़क पर जाने के लिए छटपटा जाता ।
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